जब कोई व्यक्ति हमेशा निगेटिव बात करता हो, निगेटिव सोचता हो, और निगेटिव ही व्यवहार करता हो, उस समय उसे कहां जाता था की, पाॅजिटिव सोचो, पाॅजिटिव विचार करो, पाॅजिटिव चर्चा करो और पाॅजिटिव ही कार्य करो । ब्राह्मण लोगों ने कोरोना की आड में पाॅजिटिव शब्द को ही बदनाम किया । पाॅजिटिव यह शब्द बहुत ही अच्छा और सुंदर शब्द था, लेकिन अब वह शब्द भी पुरी तरह से बदनाम हो चुका है, इसलिए लोग अब पाॅजिटिव शब्द से डरने लगे है, अर्थात ब्राह्मण लोगों ने मूलनिवासी - बहुजन समाज के लोगों में डर का माहौल निर्माण किया है, इस बात को कोई नकार नही सकते ।
डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर कहते थे की, Brahmin have many brains, within a brain. मतलब ब्राह्मण के दिमाग में कई दिमाग होते है, वर्तमान में ब्राह्मण लोगों ने अपने अन्य दिमाग का इस्तेमाल करना शुरू किया है, इसलिए लोगों में कोरोना को लेकर भ्रम की स्थिति निर्माण हो चुकी है । जैसे - जैसे २०२५ नजदीक आयेगा वैसे ही ब्राह्मण लोग उनका असली रंग दिखाना शुरू कर देंगे, २०२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को १०० साल पुरे होनेवाले है, इस शताब्दी के दरम्यान वह इस देश में उनके एजेंडे के तहत अंजाम देंगे, उसकी शुरुआत उन्होंने २०१८ से ही की है । २०२० से लेकर अब २०२१ तक ब्राह्मण लोग सिर्फ और सिर्फ निराशा का ही प्रचार - प्रसार कर रहे है, जिसका नतीजा यह होगा की, अब मानसिक रूप से विकलांग लोगों की संख्या बढेगी ।
जिस क्षेत्र का मुझे ज्ञान नही, उस पर अपनी राय देना उचित नही, कोरोना बिमारी है की षढयंत्र है? यह तो समय ही तय करेगा, किंतु एक बात सच है की, कोरोना ने सबके दिमाग / मस्तिष्क पर ही असर कर दिया है । संदेह (Doubts) और भ्रम (confusion) की स्थिति में लोगों की निर्णय क्षमता की काफी क्षति हुई है, लोगों के दिमाग पर वार करना / असर करना ही असली षढयंत्र होता है । विज्ञान की किताब में भी कोरोना का जिक्र आ चुका है । कोई कहता है की, कोरोना यह गंभीर बिमारी नही है, तो कोई कहता है की, यह गंभीर बिमारी है, बहुत से ऐसे लोग है, जिनके घर में कोरोना के पेशंट भी मिल रहे है, और बहुत - से ऐसे भी लोग है, जो कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहकर भी उन पर उसका ज्यादा असर नही होता ।
मैंने कोरोना का खुद का एक अनुभव एक दोस्त के पोस्ट पर प्रतिक्रिया के रूप में शेअर किया था, उस प्रतिक्रिया में मैंने यह कहा था की, आखिर में एक पत्रकार और मुझ जैसा सोशल मीडिया पर लिखने वाला एक साधारण कार्यकर्ता..! हमारी दोनों की विचारधारा में एक बहुत बडा अंतर है । सबसे पहले मैं यह स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक था अथवा बिल्कुल भी तैयार नही था की, यह सब एक साजिश है / षढयंत्र है, क्योंकि मैं यह जिम्मेदारी इम्पा की समझता था । पिछले साल मैंने खुद इसका अनुभव किया, कोरोना पेशेंट के संपर्क में रहकर भी कोरोना का मुझ पर बिल्कुल भी प्रभाव नही पडा. (शायद मेरी इम्यूनिटी अच्छी होगी) दुसरे साथी के पोस्ट पर मैंने दुसरे ही दिन यह प्रतिक्रिया दी थी की, मेरे मामा, मामा का छोटा लडका और दादी की Report कोरोना positive आई है । उन्हें कफ परेड (मुंबई) में भर्ती कराया गया है । दादाजी को घर पर ही नेवी नगर (मुंबई) में होम क्वारेंटाइन किया है । अब मुझे यह समझ में नही आ रहा है की, कोरोना है की नही है? मुझे कौनसा निर्णय लेना चाहिए?
तथागत बुद्ध कहते है की, 'मैं केवल एक इंसान हूं । मुझे एक विशिष्ट प्रकार का अनुभव मिला है, इसलिए मुझे जो कहना है, उसे सुनें । इस पर ध्यान दें, केवल इतना ही नहीं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें की, मैं जो कह रहा हूं यह सही है या गलत है? जैसे एक सुनार सोने को अग्नि में फेंककर परखता है, वैसे ही मेरा हर एक शब्द परखकर देखे । अर्थात पहले जाने, और फिर माने'.! पिछले साल मुझ पर कोरोना का असर हुआ नही, लेकिन इस साल घर के सदस्य कोरोना से पीड़ित है, तो क्या मुझे भी इसका अनुभव लेकर ही अपनी राय बनानी होगी?
अब फिर से बात करते है, पाॅजिटिव इस शब्द पर..! वर्तमान में भारत के मूलनिवासी - बहुजन समाज के लोगों की जान ही नही, बल्कि कई सारे शब्द भी खतरे में है, उनमें से एक है, पाॅजिटिव.. पाॅजिटिव यह शब्द पहले एक सकारात्मक शब्द हुआ करता था, लेकिन अब बडे खेद के साथ कहना पड रहा है की, भारतीय लोग अब निगेटिव इस नकारात्मक शब्द पर ही ज्यादा फोकस कर रहे है । पाॅजिटिव और निगेटिव शब्द की यह गंदी राजनीति किसी रिपोर्ट तक सिमीत ना होकर अब यह लोगों के मानसिकता के साथ जुडी हुई ब्राह्मण नीति (षढयंत्र) का एक हिस्सा हो चुका है ।
शब्द छल करना अथवा शब्दों का जाल बिछोंना यह ब्राह्मण लोगों की पुरानी नीति रह चुकी है, पाॅजिटिव यह शब्द भी इसी नीति का शिकार हुआ है । फिलहाल.. ब्राह्मण लोग मूलनिवासी बहुजन - समाज के लोगों से निगेटिव बात / निगेटिव सोच / निगेटिव विचार / निगेटिव व्यवहार और निगेटिव कार्य की ही उम्मीद रख रहे है, इसलिए हमें भी किसी भी परिस्थिति में खुद को मजबूत करना है".
- निरंजन लांडगे.
(भारत मुक्ति मोर्चा)
जय मूलनिवासी..


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