नई दिल्ली: एक जानकारी के अनुसार भारत में केवल 8 प्रतिशत ही लोगों का वैक्सीनेशन हुआ है. इसका मतलब है कि वैक्सीनेशन पर भारतीय लोगों का यकीन और विश्वास नहीं है. इस अविश्वास की वजह से प्रधानमंत्री को आवाहन करना पड़ा फिर भी लोगों को विश्वास नहीं हुआ यानी उनकी बातों पर भी लोगों का रत्तीभर भी श्वास नहीं हुआ. इससे प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का पता चल जाता है कि उनकी लोकप्रियता कितनी है. आखिरकार मजबूर होकर पीएम को खुद टीका लगवाना पड़ा और टेलीकास्ट करके दिखाया गया. इसके बाद भी लोगों का यकीन नहीं हुआ.
‘‘मुझे तो हैरानी होती है कि भारत के संविधान निर्माताओं ने आर्टिकल 32 के आधार पर फंडामेंटल राइट का बचाव करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के ऊपर बहुत ज्यादा जिम्मेदारी लगाई. लेकिन, राइट टू लीव ही खतरे में पड़ी हुई है. कई जगह पर लोगों की अव्यवस्था और प्रशासन के पंगु होने की वजह से मौत हो रही है परन्तु, प्रधानमंत्री का ध्यान केवल भाषणबाजी है. केंद्र सरकार के द्वारा जो जिम्मेदारी से कार्य करना चाहिए वह दिख नहीं रहा है.’’
इस तरह से महामारी की दूसरी लहर बहुत तेजी से बढ़ने लगी. सारी परिस्थितियों का मूल्यांकन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि जनवरी से लेकर 26 अप्रैल तक तकरीबन 70 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन हो जाना चाहिए था. लेकिन, नहीं हुआ. मेरा मानना है कि वैक्सीनेशन पर ज्यादा ध्यान देने के बजाए नरेंद्र मोदी या बीजेपी की सरकार ने चुनाव पर ज्यादा ध्यान दिया. अगर सरकार चुनाव के बजाए वैक्सीनेशन पर ध्यान दी होती तो आज इतना भयंकर संकट खड़ा नहीं होता. यह बात बामसेफ एवं भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने एमएन टीवी के एक इंटरव्यू में कही.
वामन मेश्राम ने कहा, ऐसा भी विचार व्यक्त किए जा रहे हैं कि महामारी और तेजी से बढ़ेगी. 15 मई तक 5 हजार से ज्यादा लोगों के मरने की आशंका जाहिर की जा रही है. यह बहुत भयंकर बात है. यह सारा का सारा संकट इसलिए खड़ा हुआ, क्योंकि वैक्सीनेशन तेजी से नहीं हुआ. अगर वैक्सीनेशन बहुत तेजी से हो गया होता तो लोगों का बचाव हो गया होता. ऐसे भी रिपोर्ट आ रहे हैं कि जिनका वैक्सीनेशन हुआ है उनको अगर संक्रमण हुआ भी तो वह जानलेवा नहीं है.
उन्होंने कहा, 13 करोड़ लोगों को टीका लगाया गया, उसमें से 21 हजार लोगों को दोबारा संक्रमण हुआ मगर जानलेवा नहीं हुआ. इसी तरह से जो दोबारा टीका लगाया गया उसमें से केवल 5.5 हजार लोगों पर संक्रमण होने के बावजूद भी जानलेवा नहीं हुआ. इसका मतलब है कि टीका की वजह से इस संकट को बचाया जा सकता था. मगर भारत सरकार ने टीके के बारे में लोगों को यकीन और विश्वास पैदा करने का काम नहीं किया.
वामन मेश्राम ने आगे कहा, टीके बारे में यकीन और विश्वास पैदा करने के लिए सरकार को टीके का कंटेंट बताना चाहिए था, घोषित करना चाहिए था कि टीका किन-किन चीजों से बनाया गया है, उसमें कौन-कौन सी बातों हैं. इस कंटेंट को घोषित करना चाहिए था. इससे लोगों के मन में विश्वास पैदा होता और ज्यादा से ज्यादा लोग टीका लगवाते और महामारी से बचा जा सकता था. लेकिन, सरकार ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने कहा, हमारे पास एक जानकारी है कि भारत सरकार टीके की जानकारी देने के बजाए कह रही है कि हमारे पास टीके संबंधित कोई जानकारी नहीं है. यदि भारत सरकार के पास जानकारी नहीं है तो भारत सरकार को टीका लगवाने का अभियान शुरू नहीं करना चाहिए था. टीका लगवाने के पहले जानकारी लेनी चाहिए थी.
आगे कहा, फूड एंड ड्रग्स एक्ट के अनुसार भी कंटेंट को जाहिर करना अनिवार्य है. इसके बावजूद भी यह घोषित नहीं किया गया. इस वजह से लोगों के मन में आशंका और ज्यादा गहरा हो गया. ऐसा भी नहीं है कि सरकार के पास जानकारी नहीं है, सरकार के पास जानकारी है, लेकिन बता नहीं रही है. इसी वजह से लोगों के अंदर अविश्वास फैला हुआ है और लोग टीके के लिए सामने नहीं आ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि लोग टीका नहीं लगवाना चाहते हैं, लगवाना चाहते हैं. क्योंकि, जब टीका नहीं बना था तो लोग टीके की राह देख रहे थे. मगर जब टीका आया तो इसके बारे में सवाल उठाए गए कि इसके कंटेंट को सरकार घोषित करे ताकि टीके पर लोगों का यकीन हो जाए. लेकिन भारत सरकार ने ऐसा नहीं किया. सरकार के पास अभी भी समय है कंटेंट जारी करने का.
उन्होंने कहा, एक और बात कहना चाहता हूं जो महामारी ने शुरुआती दौर में ही साबित कर दिया था कि प्राइवेटाइजेशन की वजह से मेडिकल सुविधाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त हो चुका है. भारत सरकार को मेडिकल सुविधाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए के लिए दूसरी लहर आने के पहले बहुत लंबा समय मिला था. इसके बाद भी इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलप करने का काम नहीं किया, बल्कि जो टेंपरेरी खड़ गया किया गया था को डिसमेंटल कर दिया गया. इतना नहीं बीजेपी के लोगों ने झूठा प्रचार किया कि नरेंद्र मोदी ने कोरोना परास्त कर दिया लेकिन जनता ने मास्क लगाना छोड़ दिया, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया और सैनिटाइजेशन नहीं किया इसकी वजह से कोरोना दूसरी लहर में बेकाबू हो गया. यानी झूठा प्रचार करके जनता को दोषी बना दिया. लेकिन, मैं ऐसा मानता हूं कि इसके लिए केवल भारत सरकार जिम्मेदार है.
जनता को न्याय दिलाने सुप्रीम कोर्ट जाएंगे वामन मेश्राम
एक सवाल के जवाब में कि क्या बामसेफ या बहुजन क्रांति मोर्चा की तरफ से कुछ लीगल एक्शन लेने का प्लान है? इस पर वामन मेश्राम ने कहा, हम लोग सुप्रीम कोर्ट में न्याय के लिए जाएंगे. न्याय के लिए जाने का हमारा मकसद यह है कि सुप्रीम कोर्ट आदेश करे कि फूड एंड ड्रग्स कानून के तहत भारत सरकार टीके के कंटेंट को जाहिर करें.
आर्टिकल 21 मौलिक अधिकार से जुड़े स्वास्थ्य संबंधित एक सवाल पर उन्होंने कहा, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के समय में सरकार के इशारे पर फैसले हो रहे हैं, डेमोक्रेसी खतरे में है, ऐसा सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर जजों ने आरोप लगाया था. उसमें से एक जज रंजन गोगोई भी थे जो बाद में चीफ जस्टिस बने. जबकि, रंजन गोगोई के द्वारा भी बहुत सारे गलत फैसले दिए हैं, ऐसा बहुत सारे लोगों और मीडिया का कहना था. बाद में बोबडे चीफ जस्टिस बने.
चीफ जस्टिस बोबडे पीएम को बचाने का काम किया
चीफ जस्टिस बोबडे का बैकग्राउंड यह है कि उनके दादा आरएसएस द्वारा बनाए गए ऑल इंडिया विंग्स के प्रमुख थे. चीफ जस्टिस बोबडे द्वारा भी जो फैसले होने चाहिए थे तो नहीं हुए. पिछले लॉकडाउन में सुमोटो नोटिस लेने का काम होना चाहिए था, नहीं हुआ. मजदूरों का पलायन हो रहा था उस दौरान भी निष्क्रियता देखी गई. इतना ही नहीं, बोबडे ने रिटायर होने के 1 दिन पहले भारत सरकार को बचाने का काम किया, ऐसा लोगों का आरोप है. क्योंकि, 23 तारीख को रिटायर हुए उन्होंने 26 तारीख को इमरजेंसी सुमोटो हीरिंग की लंबी तारीख देकर सरकार को प्लान बताने के लिए 1 हफ्ते का समय दे दिया.
ऐसी गंभीर परिस्थिति में 1 हफ्ते का समय दिया जाना बहुत गलत बात है. इसके अलावा हाईकोर्ट अपने-अपने राज्यों में परिस्थितियों को टैकल करने का काम कर रहे थे तो उनको रोकने का काम बोबडे के द्वारा किया गया. बोबडे ने ही खुद कहा है कि लोगों को हाईकोर्ट में जाने के बजाय डायरेक्ट सुप्रीम कोर्ट आ रहे हैं. यानी बोबडे का कहने का मतलब है कि हाईकोर्ट में जाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में डायरेक्ट नहीं आना चाहिए ऐसा. उन्होंने कहा, केंद्र सरकार के पास सबसे ज्यादा साधन संसाधन है.
लेकिन, प्रधानमंत्री का ध्यान चुनाव पर केंद्रित है. देश पर संकट है उसके बारे में मोदी पर कार्रवाई करनी चाहिए थी. लेकिन कुछ नहीं किया, बल्कि रिटायरमेंट के बाद बोबडे ने कहा मैं संतुष्ट होकर जा रहा हूं.

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