महिला आरक्षण बिल को लेकर वामन मेश्राम का बड़ा बयान

 


नई दिल्ली :  33 फीसदी महिला आरक्षण को लेकर भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने महिलाओं के नाम पर सभी महिलाओं को रिजर्वेशन देने की बात को नरेंद्र मोदी और बीजेपी- आरएसएस का जुमला करार देते हुए कहा कि इसे 2029 के बाद ही लागू किया जा सकता है. उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस- बीजेपी के लोग चुनाव जीतने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रहे है.



        वामन मेश्राम ने कहा कि क्या इससे महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिल जाएगा? क्योंकि मूल रूप से प्रतिनिधित्व मिलने की बात है. उन्होंने कहा अगर हम लोग भारतीय समाज व्यवस्था का अध्ययन करते हैं तो पता चलता है कि भारतीय समाज व्यवस्था में जो ब्रह्मीनिकल सोशल ऑर्डर है उसमें समस्त महिलाओं को शूद्र घोषित किया गया है. इस दृष्टि से 33 फीसदी महिलाओं को रिजर्वेशन देना अच्छी बात है. मगर इस 33 फीसदी में क्योंकि यह रिजर्वेशन तो सारी महिलाओं के लिए लागू हो गया हैं. अगर यह सारी महिलाओं के लिए रिजर्वेशन लागू हो गया तो इस हिसाब से ब्राह्मण समुदाय की महिलाओं के लिए भी आरक्षण लागू हो गया है. भारत के संविधान में इस बात को मान्यता नहीं है. क्योंकि ब्राह्मण समुदाय को आरक्षण नहीं है.


        उन्होंने कहा कि क्षत्रिय और वैश्य की महिलाओं को भी यह आरक्षण लागू हो जाएगा. क्योंकि यह रिजर्वेशन समस्त महिलाओं के लिए लागू हो गया है. जो एससी/एसटी के लोगों को 22.5 फीसदी पॉलिटिकल आरक्षण है. इससे उनके 131 मेंबर पार्लियामेंट चुनकर जाते है. यह आरक्षण एससी/एसटी को जॉइंट इलेक्टोरेट में है. जॉइंट इलेक्टोरेट में एससी/एसटी को आरक्षण को बाबासाहाब अंबेडकर ने विरोध किया था. बाबासाहाब अंबेडकर यह मांग करते थे कि एससी/एसटी के लोगों को सेपरेट इलेक्टोरेट होना चाहिए. और एससी/एसटी के लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होना चाहिए. मगर अनियंत्रित बहुमत के आधार पर गांधी, कांग्रेस के लोगों और ब्राह्मणों ने इसे नहीं माना और इसे 10 साल के लिए लागू किया.


        भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि शेड्यूल कास्ट और शेड्यूल्ड ट्राइब के लोगों की तरफ से हर 10 साल बाद एक्सटेंशन करने की मांग न करने के बावजूद भी इसे हर 10 साल बाद बढ़ा दिया जाता है. जबकि शेड्यूल कास्ट और शेड्यूल ट्राइब के रिजर्वेशन को इंप्लीमेंट करने के लिए कानून बनाने की मांग कि जाती है कि एससी/एसटी के आरक्षण को कानून बनाकर लागू किया जाए. और जो अधिकारी से इसे लागू नहीं करते हैं उनको दंडीत किया जाए. लेकिन यह कानून अभी तक लागू नहीं हुआ. इस काननू पर अमल करने का काम उन लोगों के ऊपर छोड़ दिया गया है जो इसके विरोधी है. इस वजह से इसका फायदा उन लोगों को नहीं होता है इसके बावजूद भी एससी/एसटी को जॉइंट इलेक्टोरेट में जो प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है वह नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेशन है, इसका एससी/एसटी के लोगों को पता ही नहीं है.


        वामन मेश्राम ने कहा कि यह रियल रिप्रेजेंटेशन नहीं है. बाबासाहाब अंबेडकर इसको रियल रिप्रेजेंटेशन नहीं मानते थे. वह एससी/एसटी के वोटरों द्वारा इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव को ही रियल रिप्रेजेंटेटिव मानते थे. मगर यह काम ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के ऊपर छोड़ दिया गया. खास तौर पर ब्राह्मणों के उपर छोड़ दिया गया क्योंकि कांग्रेस ब्राह्मणों की पार्टी थी, बीजेपी भी ब्राह्मणों की पार्टी है. इनके पार्टीयों में क्षत्रिय और वैश्य लोगों को भी नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेशन है क्योंकि इनकी पार्टी तो है नहीं. क्योंकि पार्टियां ब्राह्मणों की ही है. और 3.5 फीसदी ब्राह्मणों का ही आज पार्लियामेंट पर कब्जा है. वहीं लोग अपनी सुविधा के अनुसार किसको आरक्षण देना चाहिए और किसको नहीं देना चाहिए यह निर्धारित करते है. यही नहीं तो उसका तरिका भी निर्धारित करते है.


        बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि जॉइंट इलेक्टोरेट है और नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेशन है यानी की जो ब्राह्मणों की पार्टियां है वह एससी/एसटी के लोगों को रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर नॉमिनेट करते थे. ये ब्राह्मणों के नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेटिव है. नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेटिव को बाबासाहेब आंबेडकर रियल रिप्रेजेंटेटिव नहीं मानते थे.यही वहज है कि एससी एसटी के मेंबर पार्लियामेंट में उनके ऊपर होने वाले अन्याय अत्याचार के विरोध में कोई आवाज उठाते नहीं है.
 वामन मेश्राम ने कहा कि इसी तरह से अब समस्त महिलाओं को रिजर्वेशन दे दिया गया है. पॉलिटिकल रिजर्वेशन का सारा कॉन्सेप्ट ब्राह्मणीकल सोशल ऑर्डर के विरोध में जिन लोगों को प्रतिनिधित्व का अधिकार नहीं मिला, उनको प्रतिनिधित्व देने की बात है. मगर जब समस्त महिलाओं को रिजर्वेशन दे दिया गया, ऐसे में ब्राह्मणों की महिलाओं को भी रिप्रेजेंटेशन के नाम पर इसमें शामिल किया जाएगा. बीजेपी और कांग्रेस ब्राह्मण की पार्टी है. ये लोग अपनी महिलाओं को नॉमिनेट करने का काम करेंगे. और प्रचार में कहेंगे कि महिलाओं को हमने रिप्रेजेंटेशन दे दिया है. मगर इससे ब्राह्मणों की महिलाओं को रिप्रेजेंटेशन मिल जाएगा. उनकी संख्या से ज्यादा मिल जाएगा.ब्राह्मणों की महिलाओं को 10 से 20 फीसदी रिप्रेजेंटेशन दे सकते 33 फीसदी आरक्षण में. जब की उनकी संख्या 3.5 फीसदी है.


        उन्होंने कहा कि यह 2024 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया हुआ मामला है. क्योंकि यह 2029 में लागू होगा. इसके लागू होने के बाद भी उन लोगों को इसका कोई बेनिफिट नहीं होगा. नरेंद्र मोदी बैकवर्ड क्लास के प्रधानमंत्री है मगर यह फैसला नरेंद्र मोदी का किया हुआ फैसला नहीं है. पूना में आरएसएस के लोगों ने एक मिटिंग की उसमें उन्होंने निर्णय यह लिया. और वह निर्णय मोदी को सेंट किया. इस तरह से नरेंद्र मोदी ने उसे पर ठप्पा लगाकर लागू करवा दिया. संसद की विशेष सत्र इसलिए बुलाया गया था क्योंकि इस सत्र के पहले आरएसएस की मीटिंग पुणे में हुई. उसमें यह रेजोल्यूशन पास किया गया. और इस पर नरेंद्र मोदी ने अमल करने का काम किया. यह तो नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेशन है.


        वामन मेश्राम ने कहा कि ब्राह्मणों के द्वारा एससी/एसटी के लोगों को नॉमिनेट किया जाता था. उनको इसका आज तक फायदा नहीं हुआ. जबकि केंद्र में एससी एसटी के रिप्रेजेंटेटिव के समर्थन के बगैर बहुमत की सरकार किसी की नहीं बनती है. मगर वो नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेशन इसलिए उनकी कोई आवाज नहीं है. समस्त महिलाओं के नाम पर ब्राह्मण समुदाय की महिलाओं को रिप्रेजेंटेशन दिया जाएगा और प्रचार किया जाएगा कि हमने महिलाओं को रिप्रेजेंटेशन दे दिया है, यह एक साजिश है. इसकी बॅकवर्ड क्लासेस के लोगों को किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं है. यदि नरेंद्र मोदी 52 फीसदी ओबीसी महिलाओं को अलग से 52 फीसदी रिजर्वेशन देते. जैसे एससी/एसटी को अलग से आरक्षण है वैसे ही ओबीसी की महिलाओं को अलग से 52 फीसदी आरक्षण देते तो इससे लगभग ओबीसी की 100 महिलाए होगी. और 33 फीसदी की महिलाएं एससी एसटी के कोटे से अलग से होगी. यानी 33 फीसदी में लगभग 40 से 45 महिलाएं एससी/एसटी की होगी. यानी 33 फीसदी महिला आरक्षण में करीबन 140 से 145 महिलाएं एससी/एसटी और ओबीसी की हो सकती है. इससे संसद के स्वरूप में बदलाव आता.


        वामन मेश्राम ने कहा कि एससी/एसटी को जो नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेशन दिया गया है उसे रद्द किया जाएं. जेसे बाबा साहब अंबेडकर ने 17 अगस्त 1932 को कम्युनल अवार्ड डिक्लेयर किया था उसमें सेपरेट इलेक्टरेट की मांग की थी. उस सेपरेटे इलेक्टोरेट के तहत के एससी/एसटी के लोगों को पॉलिटिकल रिजर्वेशन दिया जाना चाहिए. हम इसकी मांग कर रहे हैं. हम इसके लिए आने वाले समय में आंदोलन भी करेंगे.


        उन्होंने कहा कि इसके अलावा ओबीसी के महिलाओं को 52 फीसदी रिजर्वेशन होना चाहिए. उनका कोटा अलग होना चाहिए. 33 फीसदी के तहत 181 में 52 फीसदी महिलाएं ओबीसी की होनी चाहिए. अगर सरकार ने ओबीसी की महिलाओं को अलग से आरक्षण निर्धारित नहीं किया तो हम इस मुद्दे पर सारे देश भर में आंदोलन करेंगे और आवश्यकता हुई तो भारत बंद भी करेंगे. वामन मेश्राम ने कहा कि नॉमिनेटेड रिप्रेजेंटेशन का हम लोग विरोध करते हैं. इसका विरोध करना बहुत ज्यादा जायज है. क्योंकि अगर ब्राह्मण नॉमिनेट करते है तो इससे उनकी संख्या पड़ेगी. इससे उनकी पार्टी का कंट्रोल बढ़ेगा. इससे महिलाओं को क्या फायदा होगा. उनको तो बोलने भी नहीं दिया जाएगा. अगर ब्राह्मणों की पार्टी की तरफ से उनकी संख्या बढ़ जाती है तो उनको संसद में बोलने भी नहीं दिया जाएगा. पार्टी की अनुमति होगी तभी यह महिलाए बोलेंगी. यानी ना बोलने वाली महिलाओं को वहां केवल गिनती की संख्या करने के लिए बढ़ाया जा रहा है.


        वामन मेश्राम ने कहा कि रिप्रेजेंटेशन जो संविधान का शब्द प्रयोग है इसका क्या मतलब है. इसका मतलब है कि महिलाओं की आवाज संसद में गुंजनी चाहिए. जैसा प्रधानमंत्री ने कहा कि महिला की आवाज संसद में गुंजेंगी. जब एससी/एसटी के लोगों की आवाज नहीं गुंजी तो जॉइंट इलेक्टोरेट में महिलाओं की आवाज संसद में कहा से गुंजेगी. बहुसंख्य लोगों को यही समझ में नहीं आता है कि सेपरेट इलेक्टोरे और जॉइंट इलेक्टोरेट क्या होता है. बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं कि जॉइंट इलेक्टोरेट की प्रणाली ब्राह्मणों को एससी/एसटी और ओबीसी के लोगों को नॉमिनेट करने का अधिकार बहाल करती है. यह तो ब्राह्मण और उनकी पार्टियों का अधिकार हो गया. इससे महिलाओं का अधिकार नहीं बढ़ेगा. यह बात केवल उन्हीं लोगों को पता है जो बाबा साहब अंबेडकर का आंदोलन जानते हैं या उनकी वैचारिक भूमिका मानते हैं.


        उन्होंने कहा कि यह 2024 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है. नरेंद्र मोदी 2023 से यही काम कर रहा है कि साल 2024 के चुनाव जीतने के लिए क्या- क्या किया जा सकता है. ऐसे में लोगों के मन में आ रहा है कि नरेंद्र मोदी बीजेपी चुनाव जीतने नहीं जा रही है. लेकिन वह चुनाव जीतने के लिए यह सब कर रहे है. इसके बावजूद भी नरेंद्र मोदी और बीजेपी 2024 का चुनाव जीत लेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं लग रही है. उनके सारे व्यवहार से ऐसा नहीं लग रहा है. क्योंकि पूरा विपक्ष एक साथ आ रहा है. इसके अलावा बीजेपी के गठबंधन में जो प्रमुख दल थे वे बाहर हो गए.


        वामन मेश्राम ने कहा कि जैसे नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी का दल बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना नहीं चाहते. ऐसे करीबन 10 से 12 दल है जो बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना नहीं चाहते. बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने में 38 दल है. इसमें से 25 दल ऐसे है जिनका एक भी मेंबर पार्लियामेंट नहीं है. इसमें से कई दलों ने आज तक चुनाव भी नही लड़ा है. केवल आम वोटरों में शो करने के लिए कि कहा जा रहा है कि हमारे गठबंधन में 38 दल है. इंडिया गठबंधन में भी ऐसे कई दल है.


        उन्होंने कहा कि महिलाओं के नाम पर रिजर्वेशन देने का ऐलान किया गया है, यह केवल नरेंद्र मोदी का जुमला ही लगता है. यह बीजेपी आरएसएस का जुमला ही है. ऐसा मेरा मानना है. क्योंकि 2029 के बाद ही इसे लागू किया जा सकता है. वामन मेश्राम ने कहा कि जनगणना के आंकड़े भारत सरकार के पास नहीं है.आरएसएस और बीजेपी के लोग ओबीसी की जनगणना का विरोध कर रहे है. ओबीसी की जनगणना करना नहीं चाहते. चुनाव जीतने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रहे है. चुनाव को ध्यान में रखते हुए जो जो हथकंडे अपनाए जा रहे है उससे हमें ऐसा नहीं लगता बीजेपी चुनाव जीत जाएगी.


        वामन मेश्राम ने कहा कि ओबीसी की जातिआधारित गिनती यह बहुत बड़ा हथकंडा हो सकता था, मगर नहीं कर रहे है. क्योंकि इससे ब्राह्मीनिकल सोशल ऑर्डर पर ब्राह्मणों का कंट्रोल कमजोर हो सकता है. इसलिए ओबीसी की जाति आधारित गिनती नहीं कर रहे है. लेकिन आने वाले समय में हम ओबीसी की जाती निहाय गिनती के मुद्दे पर भारत बंद करेंगे. दिसंबर तक बड़ी लड़ाई लड़ेंगे. इसके अलावा दिसंबर तक ईवीएम के मुद्दे पर भी भारत बंद करेंगे.

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